Shayari Page
NAZM

हम कि ठहरे अजनबी इतनी मुदारातों के बा'द

हम कि ठहरे अजनबी इतनी मुदारातों के बा'द

फिर बनेंगे आश्ना कितनी मुलाक़ातों के बा'द

कब नज़र में आएगी बे-दाग़ सब्ज़े की बहार

ख़ून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बा'द

थे बहुत बेदर्द लम्हे ख़त्म-ए-दर्द-ए-इश्क़ के

थीं बहुत बे-मेहर सुब्हें मेहरबाँ रातों के बा'द

दिल तो चाहा पर शिकस्त-ए-दिल ने मोहलत ही न दी

कुछ गिले शिकवे भी कर लेते मुनाजातों के बा'द

उन से जो कहने गए थे 'फ़ैज़' जाँ सदक़े किए

अन-कही ही रह गई वो बात सब बातों के बा'द

Comments

Loading comments…