नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही

नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही

नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही


न तन में ख़ून फ़राहम न अश्क आँखों में

नमाज़-ए-शौक़ तो वाजिब है बे-वज़ू ही सही


किसी तरह तो जमे बज़्म मय-कदे वालो

नहीं जो बादा-ओ-साग़र तो हाव-हू ही सही


गर इंतिज़ार कठिन है तो जब तलक ऐ दिल

किसी के वादा-ए-फ़र्दा की गुफ़्तुगू ही सही


दयार-ए-ग़ैर में महरम अगर नहीं कोई

तो 'फ़ैज़' ज़िक्र-ए-वतन अपने रू-ब-रू ही सही