हैराँ है जबीं आज किधर सज्दा रवा है

हैराँ है जबीं आज किधर सज्दा रवा है

सर पर हैं ख़ुदावंद सर-ए-अर्श ख़ुदा है


कब तक इसे सींचोगे तमन्ना-ए-समर में

ये सब्र का पौदा तो न फूला न फला है


मिलता है ख़िराज उस को तिरी नान-ए-जवीं से

हर बादशह-ए-वक़्त तिरे दर का गदा है


हर एक उक़ूबत से है तल्ख़ी में सवा-तर

वो रंग जो ना-कर्दा गुनाहों की सज़ा है


एहसान लिए कितने मसीहा-नफ़सों के

क्या कीजिए दिल का न जला है न बुझा है