Shayari Page
GHAZAL

वलवले जब हवा के बैठ गए

वलवले जब हवा के बैठ गए

हम भी शमएँ बुझा के बैठ गए

वक़्त आया जो तीर खाने का

मशवरे दूर जा के बैठ गए

ईद के रोज़ हम फटी चादर

पिछली सफ़ में बिछा के बैठ गए

कोई बारात ही नहीं आई

रतजगे गा बजा के बैठ गए

नाव टूटी तो सारे पर्दा-नशीं

सामने ना-ख़ुदा के बैठ गए

बे-ज़बानी में और क्या करते

गालियाँ सुन-सुना के बैठ गए

Comments

Loading comments…