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GHAZAL

परिंदे सहमे सहमे उड़ रहे हैं

परिंदे सहमे सहमे उड़ रहे हैं

बराबर में फ़रिश्ते उड़ रहे हैं

ख़ुशी से कब ये तिनके उड़ रहे हैं

हवा के डर के मारे उड़ रहे हैं

कहीं कोई कमाँ ताने हुए है

कबूतर आड़े-तिरछे उड़ रहे हैं

तुम्हारा ख़त हवा में उड़ रहा है

तआ'क़ुब में लिफ़ाफ़े उड़ रहे हैं

बहुत कहती रही आँधी से चिड़िया

कि पहली बार बच्चे उड़ रहे हैं

शजर के सब्ज़ पत्तों की हवा से

फ़ज़ा में ख़ुश्क पत्ते उड़ रहे हैं

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परिंदे सहमे सहमे उड़ रहे हैं — Fahmi Badayuni • ShayariPage