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GHAZAL

चारासाज़ों के बस की बात नहीं

चारासाज़ों के बस की बात नहीं

मैं दवाओं के बस की बात नहीं

चाहता हूं मैं दीमकों से नजात

जो किताबों के बस की बात नहीं

तेरी ख़ुशबू को क़ैद में रखना

इत्रदानों के बस की बात नहीं

ख़त्म कर दे अज़ाब कब्रों का

ताजमहलों के बस की बात नहीं

आंसुओं में जो झिलमिलाहट है

वो सितारों के बस की बात नहीं

ऐसा लगता है अब तेरा दीदार

सिर्फ़ आंखों के बस की बात नहीं

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