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GHAZAL

चलती साँसों को जाम करने लगा

चलती साँसों को जाम करने लगा

वो नज़र से कलाम करने लगा

रात फ़रहाद ख़्वाब में आया

और फ़र्शी सलाम करने लगा

फिर मैं ज़हरीले कार-ख़ानों में

ज़िंदा रहने का काम करने लगा

साफ़ इंकार कर नहीं पाया

वो मिरा एहतिराम करने लगा

लैला घर में सिलाई करने लगी

क़ैस दिल्ली में काम करने लगा

हिज्र के माल से दिल-ए-नादाँ

वस्ल का इंतिज़ाम करने लगा

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चलती साँसों को जाम करने लगा — Fahmi Badayuni • ShayariPage