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जली हैं धूप में शक्लें जो माहताब की थीं

जली हैं धूप में शक्लें जो माहताब की थीं

खिंची हैं काँटों पे जो पत्तियाँ गुलाब की थीं

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जली हैं धूप में शक्लें जो माहताब की थीं — Dagh Dehlvi • ShayariPage