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GHAZAL

मुस्कुराहट ओढ़कर यूँ ही नहीं रहता हूँ मैं

मुस्कुराहट ओढ़कर यूँ ही नहीं रहता हूँ मैं

झाँककर देखो कभी अंदर बहुत टूटा हूँ मैं

ज़िन्दगी भर का तो वादा ज़िन्दगी से कर लिया

हाँ मगर ऐ मौत ! उसके बाद बस तेरा हूँ मैं

काश ! झूठा ही सही, वो पूछता कैसे हो तुम

मैं भुला देता हर इक ग़म, बोलता, अच्छा हूँ मैं

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