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GHAZAL

दिन गुज़रते हैं अब किताबों में

दिन गुज़रते हैं अब किताबों में

और रातें तुम्हारे ख़्वाबों में

जानता हूँ उसे मैं आहट से

छुप नहीं पायेगा हिजाबों में

यार जैसी है रंगत-ओ-ख़ुशबू

नाज़ुकी कम है इन गुलाबों में

हम भी छानेंगे ख़ाक सेहरा की

वो नज़र आ गया सराबों में

वो किसी को बुरा नहीं कहते

एक अच्छाई है ख़राबों में

कोई ग़म हो तो मीर पढ़ते हैं

हम नहीं डूबते शराबों में

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