दिन गुज़रते हैं अब किताबों में
दिन गुज़रते हैं अब किताबों में
और रातें तुम्हारे ख़्वाबों में
जानता हूँ उसे मैं आहट से
छुप नहीं पायेगा हिजाबों में
यार जैसी है रंगत-ओ-ख़ुशबू
नाज़ुकी कम है इन गुलाबों में
हम भी छानेंगे ख़ाक सेहरा की
वो नज़र आ गया सराबों में
वो किसी को बुरा नहीं कहते
एक अच्छाई है ख़राबों में
कोई ग़म हो तो मीर पढ़ते हैं
हम नहीं डूबते शराबों में