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ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं

ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं

पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है

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ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं — Bashir Badr • ShayariPage