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कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा

कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा

मुझे मालूम है क़िस्मत का लिक्खा भी बदलता है

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कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा — Bashir Badr • ShayariPage