Shayari Page
GHAZAL

वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है

वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है

बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है

उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से

तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिए बनाया है

कहाँ से आई ये ख़ुशबू ये घर की ख़ुशबू है

इस अजनबी के अँधेरे में कौन आया है

महक रही है ज़मीं चाँदनी के फूलों से

ख़ुदा किसी की मोहब्बत पे मुस्कुराया है

उसे किसी की मोहब्बत का ए'तिबार नहीं

उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है

तमाम उम्र मिरा दिल उसी धुएँ में घुटा

वो इक चराग़ था मैं ने उसे बुझाया है

Comments

Loading comments…