GHAZAL•
न जी भर के देखा न कुछ बात की
By Bashir Badr
न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की
उजालों की परियाँ नहाने लगीं
नदी गुनगुनाई ख़यालात की
मैं चुप था तो चलती हवा रुक गई
ज़बाँ सब समझते हैं जज़्बात की
मुक़द्दर मिरी चश्म-ए-पुर-आब का
बरसती हुई रात बरसात की
कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं
कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की