मिरी ग़ज़ल की तरह उस की भी हुकूमत है

मिरी ग़ज़ल की तरह उस की भी हुकूमत है

तमाम मुल्क में वो सब से ख़ूबसूरत है

कभी कभी कोई इंसान ऐसा लगता है

पुराने शहर में जैसे नई इमारत है

जमी है देर से कमरे में ग़ीबतों की नशिस्त

फ़ज़ा में गर्द है माहौल में कुदूरत है

बहुत दिनों से मिरे साथ थी मगर कल शाम

मुझे पता चला वो कितनी ख़ूबसूरत है

ये ज़ाइरान-ए-अली-गढ़ का ख़ास तोहफ़ा है

मिरी ग़ज़ल का तबर्रुक दिलों की बरकत है