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GHAZAL

मान मौसम का कहा छाई घटा जाम उठा

मान मौसम का कहा छाई घटा जाम उठा

आग से आग बुझा फूल खिला जाम उठा

पी मिरे यार तुझे अपनी क़सम देता हूँ

भूल जा शिकवा गिला हाथ मिला जाम उठा

हाथ में चाँद जहाँ आया मुक़द्दर चमका

सब बदल जाएगा क़िस्मत का लिखा जाम उठा

एक पल भी कभी हो जाता है सदियों जैसा

देर क्या करना यहाँ हाथ बढ़ा जाम उठा

प्यार ही प्यार है सब लोग बराबर हैं यहाँ

मय-कदे में कोई छोटा न बड़ा जाम उठा

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