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GHAZAL

ख़ून पत्तों पे जमा हो जैसे

ख़ून पत्तों पे जमा हो जैसे

फूल का रंग हरा हो जैसे

बारहा ये हमें महसूस हुआ

दर्द सीने का ख़ुदा हो जैसे

यूँ तरस खा के न पूछो अहवाल

तीर सीने पे लगा हो जैसे

फूल की आँख में शबनम क्यूँ है

सब हमारी ही ख़ता हो जैसे

किर्चें चुभती हैं बहुत सीने में

आइना टूट गया हो जैसे

सब हमें देखने आते हैं मगर

नींद आँखों से ख़फ़ा हो जैसे

अब चराग़ों की ज़रूरत भी नहीं

चाँद इस दिल में छुपा हो जैसे

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ख़ून पत्तों पे जमा हो जैसे — Bashir Badr • ShayariPage