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GHAZAL

होंटों पे मोहब्बत के फ़साने नहीं आते

होंटों पे मोहब्बत के फ़साने नहीं आते

साहिल पे समुंदर के ख़ज़ाने नहीं आते

पलकें भी चमक उठती हैं सोने में हमारी

आँखों को अभी ख़्वाब छुपाने नहीं आते

दिल उजड़ी हुई एक सराए की तरह है

अब लोग यहाँ रात जगाने नहीं आते

यारो नए मौसम ने ये एहसान किए हैं

अब याद मुझे दर्द पुराने नहीं आते

उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में

फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते

इस शहर के बादल तिरी ज़ुल्फ़ों की तरह हैं

ये आग लगाते हैं बुझाने नहीं आते

अहबाब भी ग़ैरों की अदा सीख गए हैं

आते हैं मगर दिल को दुखाने नहीं आते

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