GHAZAL•
घर से निकले अगर हम बहक जाएँगे
By Bashir Badr
घर से निकले अगर हम बहक जाएँगे
वो गुलाबी कटोरे छलक जाएँगे
हम ने अल्फ़ाज़ को आइना कर दिया
छपने वाले ग़ज़ल में चमक जाएँगे
दुश्मनी का सफ़र इक क़दम दो क़दम
तुम भी थक जाओगे हम भी थक जाएँगे
रफ़्ता रफ़्ता हर इक ज़ख़्म भर जाएगा
सब निशानात फूलों से ढक जाएँगे
नाम पानी पे लिखने से क्या फ़ाएदा
लिखते लिखते तिरे हाथ थक जाएँगे
ये परिंदे भी खेतों के मज़दूर हैं
लौट के अपने घर शाम तक जाएँगे
दिन में परियों की कोई कहानी न सुन
जंगलों में मुसाफ़िर भटक जाएँगे