ये बार-ए-ग़म भी उठाया नहीं बहुत दिन से

ये बार-ए-ग़म भी उठाया नहीं बहुत दिन से

कि उस ने हम को रुलाया नहीं बहुत दिन से

चलो कि ख़ाक उड़ाएँ चलो शराब पिएँ

किसी का हिज्र मनाया नहीं बहुत दिन से

ये कैफ़ियत है मेरी जान अब तुझे खो कर

कि हम ने ख़ुद को भी पाया नहीं बहुत दिन से

हर एक शख़्स यहाँ महव-ए-ख़्वाब लगता है

किसी ने हम को जगाया नहीं बहुत दिन से

ये ख़ौफ़ है कि रगों में लहू न जम जाए

तुम्हें गले से लगाया नहीं बहुत दिन से