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NAZM

" कॉफ़ी"

" कॉफ़ी"

शाम की उदासी में

एक कप की कॉफ़ी में

एक शय जो कॉमन थी

वो तुम्हारी यादें थीं

यार मेरी काॅफ़ी से जो तुम्हारा रिश्ता था

वो तुम्हारे माथे के रंग से भी गहरा था

तुम जो चाह लेती तो

इनमें देख सकती थी दुनिया भर के रंगों को

नीले क्या, गुलाबी क्या, काग़ज़ी और प्याज़ी भी

मूँगिया सफ़ेदी भी

अब तुम्हें पता भी है रंग मेरी काॅफ़ी का

शरबती या शराबी है

बाद तेरे कॉफ़ी की शीशी तोड़ दी हमने

कॉफ़ी छोड़ दी हमने

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" कॉफ़ी" — Anand Raj Singh • ShayariPage