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NAZM

"अगर तुम न होती"

"अगर तुम न होती"

अगर तुम न होती वबा के दिनों में तो

मुझे कौन कहता है कि काढ़ा बना लो

सुनो कुछ दिनों को मेरी बात मानो

और ठंडी चीज़ों से ख़ुद को बचा लो

बर्फ़ का ठंडा पानी जो मुँह से लगाता

बताओ मुझे कौन नख़रे दिखाता

भला कौन कहता है

मुझे तुमसे कोई बात करनी नहीं है

जो मर्ज़ी में आए करो तुम मरो तुम

मुझे मार डालो करो ख़ूब मन की

अगर तुम न होती तो मैं किस से कहता

सुनो तुम सुनो ना मेरी जान सुन लो

न रूठो तुम मुझसे चलो मान जाओ

हमारे लिए ही तो बाग़-ए-बहिश्त से

आदम और हव्वा निकाले गए हैं

कभी हम मिलेंगे कभी हम बनेंगे

हम इक दूजे के हाथों में हाथों को देकर

इक मंज़िल चुनेंगे, उसी पर चलेंगे

अगर तुम न होती तो मैं किस से कहता हूँ

तुम्हारी ये गहरी अंटलाटिक सी आँखों में

कई टाइटैनिक दफ़न हो रहे हैं

सँभालो इन्हें तुम बचा लो इन्हें तुम

मुझे डूबने दो, मैं एंटिक बनूँगा

अगर तुम न होती तो नज़्में ये ग़ज़लें किसे मैं सुनाता

भला कौन कहता सताओ ना मुझको रुलाओ ना मुझको

मेरी वहशतों से बचा लो ना मुझको

सुनो ना गले से लगा लो मुझको

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