कोई ख़ुशी न कोई रंज मुस्तक़िल होगा

कोई ख़ुशी न कोई रंज मुस्तक़िल होगा

फ़ना के रंग से हर रंग मुत्तसिल होगा

अजब है इश्क़ अजब-तर हैं ख़्वाहिशें इस की

कभी कभी तो बिछड़ने तलक को दिल होगा

बदन में हो तो गिला क्या तमाश-बीनी का

यहाँ तो रोज़ तमाशा-ए-आब-ओ-गिल होगा

अभी तो और भी चेहरे तुम्हें पुकारेंगे

अभी वो और भी चेहरों में मुंतक़िल होगा

ज़ियाँ मज़ीद है अस्बाब ढूँढते रहना

हुआ है जो वो न होने पे मुश्तमिल होगा

तमाम-रात भटकता फिरा है सड़कों पर

हुई है सुब्ह अभी शहर मुज़्महिल होगा