उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी से अंजुम सहमे जाते हैं Allama Iqbal@allama-iqbalउरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी से अंजुम सहमे जाते हैं कि ये टूटा हुआ तारा मह-ए-कामिल न बन जाए