बाग़-ए-बहिश्त से मुझे हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ

बाग़-ए-बहिश्त से मुझे हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ

कार-ए-जहाँ दराज़ है अब मिरा इंतिज़ार कर