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आँख जो कुछ देखती है लब पे आ सकता नहीं

आँख जो कुछ देखती है लब पे आ सकता नहीं

महव-ए-हैरत हूँ कि दुनिया क्या से क्या हो जाएगी

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आँख जो कुछ देखती है लब पे आ सकता नहीं — Allama Iqbal • ShayariPage