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GHAZAL

न आते हमें इस में तकरार क्या थी

न आते हमें इस में तकरार क्या थी

मगर वा'दा करते हुए आर क्या थी

तुम्हारे पयामी ने सब राज़ खोला

ख़ता इस में बंदे की सरकार क्या थी

भरी बज़्म में अपने आशिक़ को ताड़ा

तिरी आँख मस्ती में हुश्यार क्या थी

तअम्मुल तो था उन को आने में क़ासिद

मगर ये बता तर्ज़-ए-इंकार क्या थी

खिंचे ख़ुद-बख़ुद जानिब-ए-तूर मूसा

कशिश तेरी ऐ शौक़-ए-दीदार क्या थी

कहीं ज़िक्र रहता है 'इक़बाल' तेरा

फ़ुसूँ था कोई तेरी गुफ़्तार क्या थी

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न आते हमें इस में तकरार क्या थी — Allama Iqbal • ShayariPage