मर्द-ए-मोहब्बत
मर्द-ए-मोहब्बत
उस की डिक्शनरी में मर्द का मतलब "ना-मर्द" लिखा हुआ है
ख़ुश-क़िस्मत मर्द और औरतें एक दूसरे के दिल की पसंद होते हैं
उसकी बद-क़िस्मती की पोशाक पर सब से बड़ा दाग़ यही है के वो कुछ ना-मर्दों के निचले हिस्से को पसंद है!
सिवाए एक मर्द के
सिवाए एक शख़्स के
उसे किसी मर्द के दिल ने नहीं चाहा
जिस ने उसे उस लम्हें भी सिर्फ़ देखा
जो लम्हा मर्द और ना-मर्द होने का फ़ैसला कर दिया करता है
मर्द अपनी मोहब्बत के लिए बे-शुमार नज़्में लिख सकता है
मगर एक बार भी अपनी मोहब्बत को गाली नहीं दे सकता
भले उसकी महबूबा जिस्म-फ़रोश ही क्यों ना हो
मर्द के लिए देवी होती है
अज़ीम लड़कियों और इज़्ज़त मंद मर्दों के दिल सलामत रहें
जो धोके की तलवारों से काट दिए गए
मगर अपनी मोहब्बत की बे-हुर्मती पर तैयार न हुआ
एक मर्द का लहू-लुहान दिल जिसे बद-दुआ की पूरी इजाज़त है
वो फिर भी दुआ में यही कहता है
मौला उसे उसके नाम का साया नसीब कर
वो समझ सके कि मोहब्बत और मर्द की "मीम" एक ही मिट्टी से बनी है
मोहब्बत और मर्द के सात हुरूफ़ मिल कर "साथ" बनाते हैं
लेकिन उसे ये रम्ज़ कोई मर्द ही बता सकता है
उसकी डिक्शनरी और ज़िन्दगी में कोई मर्द नहीं है