इक ख़त मुझे लिखना है

इक ख़त मुझे लिखना है

दिल्ली में बसे दिल को

इक दिन मुझे चखना है

खाजा तेरी नगरी का

खुसरो तेरी चौखट से

इक शब मुझे पीनी है

शीरीनी सुख़नवाली

खुशबू ए वतन वाली

ग़ालिब तेरे मरकद को

इक शेर सुनाना है

इक सांवली रंगत को

चुपके से बताना है

मैं दिल भी हूँ दिल्ली भी

उर्दू भी हूँ हिन्दी भी

इक ख़त मुझे लिखना है

मुमकिन है कभी लिक्खूँ

मुमकिन है अभी लिक्खूँ