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GHAZAL

उस मोहल्ले के सब घरों की खैर

उस मोहल्ले के सब घरों की खैर

और घरों में जले दियों की खैर

मां मैं कुर्बान तेरे गुस्से पर

बाबा जानी की झिड़कियों की खैर

तेरे हम-ख्वाब दोस्तों के निसार

तेरी हम-नाम लड़कियों की खैर

जो तेरे खद्दो खाल पर होंगे

तेरे बेटौ की बेटियों की खैर

जिनका सरदार ओ पेशवा में हूं

तेरे हाथो पूछे हुओं की खैर

टूटी-फूटी लिखाई के सदके

पहली पहली मोहब्बतों की खैर

दुश्मनों के लिए दुआ यानी

तेरी जानिब के दोस्तों की खैर

फेसबुक से जो दूर बैठे हैं

उन फकीरों की बैठकों की खैर

कार में बाग़ खिल गया जैसे

गुलबदन तेरी खुशबुओं की खैर

वो जो सीनों पे डस के हंसती है

उन हवसनाक नागिनों की खैर

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