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GHAZAL

लहजे में खनक बात में दम है तो करम है

लहजे में खनक बात में दम है तो करम है

गर्दन दर-ए-हैदर पे जो ख़म है तो करम है

मत सोच कि इस घर पे करम है तो अलम है

दरअस्ल तेरे घर पे अलम है तो करम है

बिस्तर पे कमर ठीक नहीं लगती तो ख़ुश हो

ख़ुराक भी ऐ यार जो कम है तो करम है

बे-निस्बत-ओ-बे-इश्क कहाँ मिलती है इज़्ज़त

मुझ पे मेरे मौला का करम है तो करम है

मुंकिर की जलन ही में तो मोमिन का मज़ा है

गर ताना-ओ-तश्नी-ओ-सितम है तो करम है

अब जब के कोई हाल भी क्यूँ पूछे किसी का

इक आँख मेरे वास्ते नम है तो करम है

अब जब के कोई आँख नहीं रुकती किसी पर

जो कोई जहाँ जिसका सनम है तो करम है

मिदहत का मज़ा भी हो तग़ज़्ज़ुल की अदा भी

कुछ ऐसा सुख़न तुझको बहम है तो करम है

अख़्तर से ग़ज़ल-साज़ों के होते हुए 'ज़रयून'

थोड़ा सा अगर तेरा भरम है तो करम है

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लहजे में खनक बात में दम है तो करम है — Ali Zaryoun • ShayariPage