GHAZAL•
हो जिसे यार से तस्दीक़ नहीं कर सकता
By Ali Zaryoun
हो जिसे यार से तस्दीक़ नहीं कर सकता
वो किसी शेर की तज़हीक नहीं कर सकता
पुर-कशिश दोस्त मेरे हिज्र की मजबूरी समझ
मैं तुझे दूर से नज़दीक नहीं कर सकता
मुझ पे तनकीद से रहते हैं उजाले जिनमें
उन दुकानों को मैं तारीक नहीं कर सकता
कौन से ग़म से निकलना है किसे रखना है
मसअला ये है मैं तफरीक नहीं कर सकता
पेड़ को गालियां बकने के इलावा ज़रयून
क्या करें वो के जो तख़लीक़ नहीं कर सकता
शेर तो खैर मैं तन्हाई में कह लूगा अली
अपनी हालत तो मैं खुद ठीक नहीं कर सकता
हिज्र से गुजरे बिना इश्क बताने वाला
बहस कर सकता है तहकीक नहीं कर सकता