छूकर दर-ए-शिफा को शिफा हो गया हूं मैं
छूकर दर-ए-शिफा को शिफा हो गया हूं मैं
इस अरसा-ए-वबा में दुआ हो गया हूं मैं
इक बे-निशा के घर का पता हो गया हूं मैं
हर ला दवा के ग़म की दवा हो गया हूं मैं
मैं था जो अपनी आप रुकावट था साहिबा
अच्छा हुआ कि ख़ुद से जुदा हो गया हूं मैं
तूने उधर जुदाई का सोचा ही था इधर
बैठे-बिठाए तुझ से रिहा हो गया हूं मैं
तुमको खबर नहीं है कि क्या बन गए हो तुम
मुझ को तो सब पता है कि क्या हो गया हूं मैं
मैं हूं तो लोग क्यूं मुझे कहते हैं कि वो हो तुम
गर तुम नहीं तो किस में फना हो गया हूं मैं