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हम ऐसी कुल किताबें क़ाबिल-ए-ज़ब्ती समझते हैं

हम ऐसी कुल किताबें क़ाबिल-ए-ज़ब्ती समझते हैं

कि जिन को पढ़ के लड़के बाप को ख़ब्ती समझते हैं

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हम ऐसी कुल किताबें क़ाबिल-ए-ज़ब्ती समझते हैं — Akbar Allahabadi • ShayariPage