ज़िद है उन्हें पूरा मिरा अरमाँ न करेंगे

ज़िद है उन्हें पूरा मिरा अरमाँ न करेंगे

मुँह से जो नहीं निकली है अब हाँ न करेंगे


क्यूँ ज़ुल्फ़ का बोसा मुझे लेने नहीं देते

कहते हैं कि वल्लाह परेशाँ न करेंगे


है ज़ेहन में इक बात तुम्हारे मुतअल्लिक़

ख़ल्वत में जो पूछोगे तो पिन्हाँ न करेंगे


वाइज़ तो बनाते हैं मुसलमान को काफ़िर

अफ़्सोस ये काफ़िर को मुसलमाँ न करेंगे


क्यूँ शुक्र-गुज़ारी का मुझे शौक़ है इतना

सुनता हूँ वो मुझ पर कोई एहसाँ न करेंगे


दीवाना न समझे हमें वो समझे शराबी

अब चाक कभी जेब ओ गरेबाँ न करेंगे


वो जानते हैं ग़ैर मिरे घर में है मेहमाँ

आएँगे तो मुझ पर कोई एहसाँ न करेंगे