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अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें

जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें

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अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें — Ahmad Faraz • ShayariPage