शो'ला था जल-बुझा हूँ हवाएँ मुझे न दो

शो'ला था जल-बुझा हूँ हवाएँ मुझे न दो

मैं कब का जा चुका हूँ सदाएँ मुझे न दो


जो ज़हर पी चुका हूँ तुम्हीं ने मुझे दिया

अब तुम तो ज़िंदगी की दुआएँ मुझे न दो


ये भी बड़ा करम है सलामत है जिस्म अभी

ऐ ख़ुसरवान-ए-शहर क़बाएँ मुझे न दो


ऐसा न हो कभी कि पलट कर न आ सकूँ

हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो


कब मुझ को ए'तिराफ़-ए-मोहब्बत न था 'फ़राज़'

कब मैं ने ये कहा है सज़ाएँ मुझे न दो