जो ग़ैर थे वो इसी बात पर हमारे हुए

जो ग़ैर थे वो इसी बात पर हमारे हुए

कि हम से दोस्त बहुत बे-ख़बर हमारे हुए


किसे ख़बर वो मोहब्बत थी या रक़ाबत थी

बहुत से लोग तुझे देख कर हमारे हुए


अब इक हुजूम-ए-शिकस्ता-दिलाँ है साथ अपने

जिन्हें कोई न मिला हम-सफ़र हमारे हुए


किसी ने ग़म तो किसी ने मिज़ाज-ए-ग़म बख़्शा

सब अपनी अपनी जगह चारागर हमारे हुए


बुझा के ताक़ की शमएँ न देख तारों को

इसी जुनूँ में तो बर्बाद घर हमारे हुए


वो ए'तिमाद कहाँ से 'फ़राज़' लाएँगे

किसी को छोड़ के वो अब अगर हमारे हुए