Shayari Page
GHAZAL

कौन कहता है फ़क़त ख़ौफ़-ए-अज़ल देता है

कौन कहता है फ़क़त ख़ौफ़-ए-अज़ल देता है

ज़ुल्म तो ज़ुल्म है, ईमान बदल देता है

बेबसी मज़हबी इंसान बना देती है

मान लेते हैं ख़ुदा सब्र का फल देता है

वो बख़ील आज भी दाता है, भले वक़्त न दे

मैं उसे याद भी कर लूँ तो ग़ज़ल देता है

उसकी कोशिश है कि वो अपनी कशिश बाक़ी रखे

मेरे जज़्बात मचलते हैं तो चल देता है

खाली बर्तन ही खनकता है, तभी आदमी भी

घास मत डालो तो औक़ात उगल देता है

हम को मेहनत पे ही मिलना है अगर ख़ुल्द में चैन

ये तो घर बैठे-बिठाये हमें थल देता है

ज़ेहन में और कोई दुख नहीं रहता 'अफ़कार'

जितने बल बंदे को वो ज़ुल्फ़ का बल देता है

Comments

Loading comments…
कौन कहता है फ़क़त ख़ौफ़-ए-अज़ल देता है — Afkar Alvi • ShayariPage