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GHAZAL

जो भी इज़्ज़त के डर से डर जाए

जो भी इज़्ज़त के डर से डर जाए

मत करे इश्क़ अपने घर जाए

बात आ जाये जब दुआओं पर

इससे बेहतर है बंदा मर जाए

थोड़ी सी और देर सामने रह

मेरी आँखों का पेट भर जाए

अल-मुहैमिन के घर भी खतरे हैं

जाए भी तो कोई किधर जाए

हाँ अकीदा अगर न क़ैद रखे

फिर तो इंसान कुछ भी कर जाए

बेबसी की ये आख़िरी हद है

मेरी औलाद आप पर जाए

उसके चेहरे पर आज उदासी थी

हाए 'अफ़्कार अल्वी' मर जाए

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