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GHAZAL

तू समझता है तेरा हिज्र गवारा कर के

तू समझता है तेरा हिज्र गवारा कर के

बैठ जाएँगे मोहब्बत से किनारा कर के

ख़ुदकुशी करने नहीं दी तेरी आँखों ने मुझे

लौट आया हूँ मैं दरिया का नज़ारा कर के

जी तो करता है उसे पाँव तले रौंदने को

छोड़ देता हूँ मुक़द्दर का सितारा कर के

करना हो तर्क-ए-त'अल्लुक़ तो कुछ ऐसे करना

हम को तकलीफ़ न हो ज़िक्र तुम्हारा कर के

इसलिए उसको दिलाता हूँ मैं ग़ुस्सा 'ताबिश'

ताकि देखूँ मैं उसे और भी प्यारा कर के

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तू समझता है तेरा हिज्र गवारा कर के — Abbas Tabish • ShayariPage