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GHAZAL

टूटते इश्क़ में कुछ हाथ बँटाते जाते

टूटते इश्क़ में कुछ हाथ बँटाते जाते

सारा मलबा मेरे ऊपर न गिराते जाते

इतनी उजलत में भी क्या आँख से ओझल होना

जा रहे थे तो मुझे तुम नज़र आते जाते

कम से कम रखता पलटने की तवक़्क़ो तुम से

हाथ में हाथ लिया था तो दबाते जाते

किन अँधेरों में मुझे छोड़ दिया है तुमने

इस से बेहतर था मुझे आग लगाते जाते

मैं भी होता तेरे रस्ते के दरख़्तों में दरख़्त

इस तरह देख तो लेता तुझे आते जाते

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टूटते इश्क़ में कुछ हाथ बँटाते जाते — Abbas Tabish • ShayariPage