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GHAZAL

न पूछ कितने है बेताब देखने के लिए

न पूछ कितने है बेताब देखने के लिए

हम एक साथ कईं ख़्वाब देखने के लिए

मैं अपने आप से बाहर निकल के बैठ गया

कि आज आयेंगे अहबाब देखने के लिए

जमाने बाद बिल-आख़िर वो रात आ गयी है

कि लोग निकले है महताब देखने के लिए

सुनहरी लड़कियों इनको मिलो मिलो न मिलो

गरीब होते है बस ख़्वाब देखने के लिए

मुझे यक़ी है कि तुम आईना भी देखोगे

मेरी शिकस्त के असबाब देखने के लिए

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न पूछ कितने है बेताब देखने के लिए — Abbas Tabish • ShayariPage