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GHAZAL

मेरी तन्हाई बढ़ाते हैं चले जाते हैं

मेरी तन्हाई बढ़ाते हैं चले जाते हैं

हंस तालाब पे आते हैं चले जाते हैं

इस लिए अब मैं किसी को नहीं जाने देता

जो मुझे छोड़ के जाते हैं चले जाते हैं

मेरी आँखों से बहा करती है उन की खुशबु

रफ्तगां ख्वाब में आते हैं चले जाते हैं

शादी -इ -मार्ग का माहौल बना रहता है

आप आते हैं रुलाते हैं चले जाते हैं

कब तुम्हें इश्क़ पे मजबूर किया है हम ने

हम तो बस याद दिलाते हैं चले जाते हैं

आप को कौन तमाशाई समझता है यहाँ

आप तो आग लगते हैं चले जाते हैं

हाथ पत्थर को बाधाओं तो सगण -इ -दुनिया

हैराती बन के दिखते हैं चले जाते हैं

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मेरी तन्हाई बढ़ाते हैं चले जाते हैं — Abbas Tabish • ShayariPage