क्या ज़रूरी है मुहब्बत में तमाशा होना
क्या ज़रूरी है मुहब्बत में तमाशा होना
जिससे मिलना ही नहीं उससे जुदा क्या होना
ज़िंदा होना तो नहीं हिज्र में ज़िंदा होना
हम इसे कहते हैं होने के अलावा होना
तेरा सूरज के क़बीले से त'अल्लुक़ तो नहीं
ये कहाँ से तुझे आया है सभी का होना
तूने आने में बहुत देर लगा दी वरना
मैं नहीं चाहता था हिज्र में बूढ़ा होना
क्या तमाशा है कि सब मुझको बुरा कहते हैं
और सब चाहते हैं मेरी तरह का होना