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Love Shayari 2020

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10 Feb 2025

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Love Shayari in Hindi

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Sad Love Shayari

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10 Feb 2025

Shayari

ये फ़िल्मों में ही सबको प्यार मिल जाता है आख़िर मेंभरम रखा है तेरे हिज्र का वरना क्या होता हैक्या ग़लत-फ़हमी में रह जाने का सदमा कुछ नहींमुझ से मत पूछो के उस शख़्स में क्या अच्छा हैटूट भी जाऊँ तो तेरा क्या हैजो मेरे साथ मोहब्बत में हुई आदमी एक दफा सोचेगाअगर तू मुझसे शर्माती रहेगीसब परिंदों से प्यार लूँगा मैंअश्क ज़ाया हो रहे थे देख कर रोता न थाये इश्क़ वो है जिसने बहर-ओ-बर ख़राब कर दियानहीं था अपना मगर फिर भी अपना अपना लगाक्या ग़लतफ़हमी में रह जाने का सदमा कुछ नहीअब मजीद उससे ये रिश्ता नहीं रखा जातादिल मोहब्बत में मुब्तला हो जाएअश्क ज़ाएअ' हो रहे थे देख कर रोता न थावैसे मैं ने दुनिया में क्या देखा हैजब किसी एक को रिहा किया जाएजो तेरे साथ रहते हुए सोगवार होमुझ से मिलता है पर जिस्म की सरहद पार नहीं करतापायल कभी पहने कभी कंगन उसे कहनामेरी आंख से तेरा गम छलक तो नहीं गयाहां ये सच है कि मोहब्बत नहीं की मेरे दिल में ये तेरे सिवा कौन है?ख़ुद पर जब इश्क़ की वहशत को मुसल्लत करूँगाज़ेहन पर ज़ोर देने से भी याद नहीं आता कि हम क्या देखते थेथोड़ा लिक्खा और ज़ियादा छोड़ दियाइस एक डर से ख़्वाब देखता नहीं अश्क़ ज़ाया हो रहे थे, देख कर रोता न थातेरा चुप रहना मेरे ज़हन में क्या बैठ गया सफ़ेद शर्ट थी तुम सीढ़ियों पे बैठे थेमुझे बहुत है के मैं भी शामिल हूँ तेरी जुल्फों की ज़ाइरीनों में,"तारीख़ क्या है""तू किसी और ही दुनिया में मिली थी मुझसे"सुब्हें रौशन थी और गर्मियों की थका देने वाले दिनों मेंमुझ पे तेरी तमन्ना का इल्ज़ाम साबित न होता तो सब ठीक थालौट कर नहीं आता कब्र से कोई लेकिनख़ामोश लब हैं झुकी हैं पलकें, दिलों में उल्फ़त नई नई हैआँख में नम तक आ पहुँचा हूँ"याद है पहले रोज़ कहा था"तरीक़े और भी हैं इस तरह परखा नहीं जाताअपने दिल में बसाओगे हमकोअगर तुम हो तो घबराने की कोई बात थोड़ी हैइस तरह तल्ख़ नवाई से नहीं चलता हैतेरे बग़ैर ही अच्छे थे क्या मुसीबत हैतेरे वादे से प्यार है लेकिनबग़ैर उसको बताए निभाना पड़ता हैइश्क़ में दान करना पड़ता हैसोचूँ तो सारी उम्र मोहब्बत में कट गईहुस्न बला का कातिल हो पर आखिर को बेचारा है मुझे अब तुम से डर लगने लगा हैक्या कहा इश्क़ जावेदानी है!ज़िंदगी किस तरह बसर होगीशायद मुझे किसी से मोहब्बत नहीं हुईतुम हक़ीक़त नहीं हो हसरत होगाहे गाहे बस अब यही हो क्यासर ही अब फोड़िए नदामत मेंतू भी चुप है मैं भी चुप हूं ये कैसी तन्हाई हैनया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम ये ग़म क्या दिल की 'आदत है नहीं तो"ख़ल्वत""सज़ा"ये जो मैं होश में रहता नहीं तुमसे मिल कर मैं भी तुम जैसा हूँ अपने से जुदा मत समझो अकेले रहने की ख़ुद ही सज़ा क़ुबूल की हैजनाज़े पर मेरे लिख देना यारोंवो हिंदू, मैं मुस्लिम, ये सिक्ख, वो ईसाईतेरी हर बात मोहब्बत में गवारा कर केतेरी हर बात मोहब्बत में गवारा करकेहम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते हैं आज हम दोनों को फ़ुर्सत है, चलो इश्क़ करेंहम ने ख़ुद अपनी रहनुमाई की बैर दुनिया से क़बीले से लड़ाई लेते चराग़ों को उछाला जा रहा है अब अपनी रूह के छालों का कुछ हिसाब करूँ बचा के रक्खी थी कुछ रौशनी ज़माने सेबुलाती है मगर जाने का नहींबीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिएहुआ ही क्या जो वो हमें मिला नहींअब तो पाँच मिनट के अंदर चेहरे बदले जाते हैंमैं भी इक शख़्स पे इक शर्त लगा बैठा थाउसे किसी से मोहब्बत थी और वो मैं नहीं थामैंने उससे प्यार किया है मिल्किय्यत का दावा नइँये तू जो मोहब्बत में सिला माँग रहा हैतू जो हर रोज़ नए हुस्न पे मर जाता हैमुझे बातें नहीं तेरी मोहब्बत चाहिए थीतेरी ख़ुशियों का सबब यार कोई और है नाये मोहब्बत है ये मर जाने से भी जाती नहींअच्छी लड़की ज़िद नहीं करतेजिस तरह वक़्त गुज़रने के लिए होता हैतुम जो कहते हो सुनूँगा जो पुकारोगे मुझेमेरे लिए तो इश्क़ का वादा है शायरीशाहसाज़ी में रियायत भी नही करते हो ख़्वाब का ख़्वाब हक़ीक़त की हक़ीक़त समझें मैं जब वजूद के हैरत-कदे से मिल रहा था मन जिस का मौला होता है पराई नींद में सोने का तजरबा कर के पहले-पहल लड़ेंगे तमस्ख़ुर उड़ाएँगे तंज करना है मुझ पर अजी कीजिए नजरअंदाज हो जाने का ज़हर अपनी नसों में भर रहा है कौन जानेआसान तो ये कार-ए-वफ़ा होता नहीं हैहो जिसे यार से तस्दीक़ नहीं कर सकताप्यार में जिस्म को यकसर न मिटा जाने देसब कर लेना लम्हें जाया मत करना साज़ तैयार कर रहा हूँ मैंडरने के लिए है न नसीहत के लिए हैशाहसाज़ी में रियायत भी नहीं करते होहालत ए हिज्र में हूँ यार मेरी सम्त न देखज़ने हसीन थी और फूल चुन कर लाती थीमन जिस का मौला होता हैजो इस्म-ओ-जिस्म को बाहम निभाने वाला नहीचादर की इज्जत करता हूं और पर्दे को मानता हूंहालत जो हमारी है तुम्हारी तो नहीं है "दोस्त के नाम ख़त"मर्द-ए-मोहब्बतमैं इश्क अलस्त परस्त हूंअदाकार के कुछ भी बस का नहीं हैसुहागन भी बता देगी मगर तुम पूछो विधवा सेइश्क़ में ये दावा तो नईं है मैं ही अव्वल आऊँगाप्यार दो बार थोड़ी होता हैमैं क़िस्सा मुख़्तसर कर के, ज़रा नीची नज़र कर केमोहब्बत दो-क़दम पर थक गई थीकितने हसीं हो माशा-अल्लाहकोई पागल ही मोहब्बत से नवाज़ेगा मुझेकिसी भूके से मत पूछो मोहब्बत किस को कहते हैं अब मेरे साथ नहीं है समझे नाएक पहुँचा हुआ मुसाफ़िर है बैठे-बैठे इक दम से चौंकाती है अब उस का वस्ल महँगा चल रहा है पहले मुफ़्त में प्यास बटेगी रास्ते जो भी चमक-दार नज़र आते हैं वैसे तू मेरे मकाँ तक तो चला आता हैतुम्हें इक बात कहनी थी बात करो रूठे यारों से सन्नाटों से डर जाते हैंखुद से भी मिल न सको, इतने पास मत होनाकोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता हैकबूतर इश्क़ का उतरे तो कैसे?रूह जिस्म का ठौर ठिकाना चलता रहता हैबात करनी है बात कौन करेसौ सौ उमीदें बँधती है इक इक निगाह परइश्क़ तिरी इंतिहा इश्क़ मिरी इंतिहायक़ीं मोहकम अमल पैहम मोहब्बत फ़ातेह-ए-आलम तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ सितारों से आगे जहाँ और भी हैं नाला है बुलबुल-ए-शोरीदा तिरा ख़ाम अभी ख़ुदी हो इल्म से मोहकम तो ग़ैरत-ए-जिब्रील हज़ार ख़ौफ़ हो लेकिन ज़बाँ हो दिल की रफ़ीक़ अपनी जौलाँ-गाह ज़ेर-ए-आसमाँ समझा था मैं ढूँड रहा है फ़रंग ऐश-ए-जहाँ का दवाम अनोखी वज़्अ है सारे ज़माने से निराले हैं परेशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए ला फिर इक बार वही बादा ओ जाम ऐ साक़ी सितारों से आगे जहाँ और भी हैं तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाही ला फिर इक बार वही बादा ओ जाम ऐ साक़ी परेशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए अनोखी वज़्अ है सारे ज़माने से निराले हैं जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाही गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरीये मोहब्बत का फ़साना भी बदल जाएगा प्यार की रात हो छत पर हो तेरा साथ तो फ़िरमोहब्बत के घरों के कच्चे-पन को ये कहाँ समझेंतुम्हारा प्यार तो साँसों में साँस लेता हैअंधेरा ज़ेहन का सम्त-ए-सफ़र जब खोने लगता है अपने साए को इतना समझाने दे अपने अंदाज़ का अकेला था दूर से ही बस दरिया दरिया लगता है कुछ इतना ख़ौफ़ का मारा हुआ भी प्यार न हो चलो हम ही पहल कर दें कि हम से बद-गुमाँ क्यूँ हो क्या बताऊँ कैसा ख़ुद को दर-ब-दर मैं ने किया तहरीर से वर्ना मिरी क्या हो नहीं सकता कहाँ सवाब कहाँ क्या अज़ाब होता है मिरी वफ़ाओं का नश्शा उतारने वाला चाँद का ख़्वाब उजालों की नज़र लगता हैउसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी हैजहां दरिया कहीं अपने किनारे छोड़ देता हैहादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ देंवो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जातामोहब्बत ना-समझ होती है समझाना ज़रूरी है"ख़्वाब नहीं देखा"वो जिस घमंड से बिछड़ा गिला तो इस का हैमाना के मोहब्बत का छुपाना है मोहब्बत किसे ख़बर वो मोहब्बत थी या रक़ाबत थी शहर-वालों की मोहब्बत का मैं क़ायल हूँ मगरतू मोहब्बत से कोई चाल तो चल न हरीफ़-ए-जाँ न शरीक-ए-ग़म शब-ए-इंतिज़ार कोई तो होसाक़िया एक नज़र जाम से पहले पहले तुझ से मिल कर तो ये लगता है कि ऐ अजनबी दोस्त जो ग़ैर थे वो इसी बात पर हमारे हुए मुंतज़िर कब से तहय्युर है तिरी तक़रीर का मैं तो मक़्तल में भी क़िस्मत का सिकंदर निकला उस का अपना ही करिश्मा है फ़ुसूँ है यूँ है अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ ज़िंदगी से यही गिला है मुझे उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ अब के तजदीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानाँ रोग ऐसे भी ग़म-ए-यार से लग जाते हैं अगरचे ज़ोर हवाओं ने डाल रक्खा है क़ुर्बतों में भी जुदाई के ज़माने माँगे दिल बदन का शरीक-ए-हाल कहांउस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआतुझ से मिल कर तो ये लगता है कि ऐ अजनबी दोस्तअब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलेंतेरी बातें ही सुनाने आएक़ुर्बतों में भी जुदाई के ज़माने माँगेक्यूँ तबीअत कहीं ठहरती नहीं"भली सी एक शक्ल थी"फिर न कीजे मिरी गुस्ताख़-निगाही का गिला इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले करमैं जिसे प्यार का अंदाज़ समझ बैठा हूँ अपनी तबाहियों का मुझे कोई ग़म नहीं जुर्म-ए-उल्फ़त पे हमें लोग सज़ा देते हैं मेरी तक़दीर में जलना है तो जल जाऊँगा हवस-नसीब नज़र को कहीं क़रार नहीं भूले से मोहब्बत कर बैठा, नादाँ था बेचारा, दिल ही तो है तिरी दुनिया में जीने से तो बेहतर है कि मर जाएँ मोहब्बत तर्क की मैं ने गरेबाँ सी लिया मैं ने देखा है ज़िंदगी को कुछ इतना क़रीब से मिलती है ज़िंदगी में मोहब्बत कभी कभी चेहरे पे ख़ुशी छा जाती है आँखों में सुरूर आ जाता है साथियो! मैं ने बरसों तुम्हारे लिए रात सुनसान थी बोझल थीं फ़ज़ा की साँसेंमैंने चांद और सितारों की तमन्ना की थीहिरासमेरे ख़्वाबों के झरोकों को सजाने वालीताज तेरे लिए इक मज़हर-ए-उल्फ़त ही सही मोहब्बत अपनी क़िस्मत में नहीं है यूँ तो रुस्वाई ज़हर है लेकिनपरेशाँ है वो झूटा इश्क़ कर के बस तुम्हारा मकाँ दिखाई दिया वफ़ा-दारी ग़नीमत हो गई क्या दिल जब ख़ाली हो जाता हैवफ़ा-दारी ग़नीमत हो गई क्याबस तुम्हारा मकाँ दिखाई दियातुम्हें बस यह बताना चाहता हूं ज़रा मोहतात होना चाहिए था पूछ लेते वो बस मिज़ाज मिरा हमारे दिल में अब तल्ख़ी नहीं है शहर के दुकाँ-दारो कारोबार-ए-उल्फ़त में सूद क्या ज़ियाँ क्या है तुम न जान पाओगेदस्त-बरदार अगर आप ग़ज़ब से हो जाएँ दिल में महक रहे हैं किसी आरज़ू के फूल जब आईना कोई देखो इक अजनबी देखो सारी हैरत है मिरी सारी अदा उस की है हमारे शौक़ की ये इंतिहा थी कुछ तुम ने कहा वो जो कहलाता था दीवाना तिरा अजीब आदमी था वो मैं जब भी गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है, जो चाहो लगा दो डर कैसा दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा आज यूँ मौज-दर-मौज ग़म थम गया इस तरह ग़म-ज़दों को क़रार आ गया हर हक़ीक़त मजाज़ हो जाए अब के बरस दस्तूर-ए-सितम में क्या क्या बाब ईज़ाद हुए इश्क़ मिन्नत-कश-ए-क़रार नहीं फिर हरीफ़-ए-बहार हो बैठे दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के कब याद में तेरा साथ नहीं कब हात में तेरा हात नहीं कब याद में तेरा साथ नहीं, कब हात में तेरा हात नहींराज़-ए-उल्फ़त छुपा के देख लिया "अंजाम"शाम के पेच-ओ-ख़म सितारों से गर मुझे इस का यक़ीं हो मिरे हमदम मिरे दोस्त आज के नाम और कुछ देर में जब फिर मिरे तन्हा दिल को मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया गर मुझे इस का यक़ीं हो मिरे हमदम मिरे दोस्तमुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँगवो लोग बहुत ख़ुश-क़िस्मत थे हमें तो उस से मोहब्बत है और बेहद हैकिताब, फ़िल्म, सफ़र इश्क़, शायरी, औरतमैं चाहता हूँ मोहब्बत मुझे फ़ना कर देअब मैं क्या अपनी मोहब्बत का भरम भी न रखूँ मैं चाहता हूँ मोहब्बत मेरा वो हाल करेतो क्या इक हमारे लिए ही मोहब्बत नया तजरबा हैइश्क़ ने जब भी किसी दिल पे हुकूमत की हैनहीं कि पंद-ओ-नसीहत का क़हत पड़ गया हैजो भी जीने के सिलसिले किए थेमैं चाहता हूँ कि दिल में तिरा ख़याल न होआप जैसों के लिए इस में रखा कुछ भी नहींएक तस्वीर कि अव्वल नहीं देखी जातीतुम मोहब्बत को खेल कहते होमोहब्बत एक ख़ुशबू है हमेशा साथ चलती है मैं तेरे साथ सितारों से गुज़र सकता हूँ ख़ुशबू की तरह आया वो तेज़ हवाओं में जब रात की तन्हाई दिल बन के धड़कती है वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है भीगी हुई आँखों का ये मंज़र न मिलेगा परखना मत परखने में कोई अपना नहीं रहता अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया होंटों पे मोहब्बत के फ़साने नहीं आते अब किसे चाहें किसे ढूँडा करेंये चराग़ बे-नज़र है ये सितारा बे-ज़बाँ हैरेत भरी है इन आँखों में आँसू से तुम धो लेनाकौन आया रास्ते आईना-ख़ाने हो गएशबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआमान मौसम का कहा छाई घटा जाम उठाफूल बरसे कहीं शबनम कहीं गौहर बरसेख़ानदानी रिश्तों में अक्सर रक़ाबत है बहुतमेरे सीने पर वो सर रक्खे हुए सोता रहाप्यार की नई दस्तक दिल पे फिर सुनाई दीफ़लक से चाँद सितारों से जाम लेना हैइक परी के साथ मौजों पर टहलता रात कोपिछली रात की नर्म चाँदनी शबनम की ख़ुनकी से रचा हैमेरी आंखों में तिरे प्यार का आंसू आएसर से पा तक वो गुलाबों का शजर लगता हैआँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखाकहाँ आँसुओं की ये सौग़ात होगीहमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाएतमाम जिस्म को आँखें बना के राह तकोमोहब्बत एक पाकीज़ा अमल है इस लिए शायद गिले शिकवे ज़रूरी हैं अगर सच्ची मुहब्बत है भुला पाना बहुत मुश्किल है सब कुछ याद रहता हैअपनी यादों से कहो इक दिन की छुट्टी दे मुझे पहले ये काम बड़े प्यार से माँ करती थीतुम्हारे जिस्म की ख़ुश्बू गुलों से आती हैबादशाहों को सिखाया है क़लंदर होनाआप को चेहरे से भी बीमार होना चाहिए ख़फ़ा होना ज़रा सी बात पर तलवार हो जाना भुला पाना बहुत मुश्किल है सब कुछ याद रहता हैलेके माज़ी को जो हाल आया तो दिल काँप गयादुश्मनों से प्यार होता जाएगाऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत नहीं रहीहुस्न जब मेहरबाँ हो तो क्या कीजिए ये कहना था उन से मोहब्बत है मुझ कोन हारा है इश्क़ और न दुनिया थकी हैहुस्न जब मेहरबाँ हो तो क्या कीजिएवही फिर मुझे याद आने लगे हैं क्या हुआ हुस्न है हम-सफ़र या नहींया रब मुआ'फ़ कर के न दे कर्ब-ए-इंफ़िआल तू चाहिए न तेरी वफ़ा चाहिए मुझे इक पल में इक सदी का मज़ा हम से पूछिए यार इक बार परिंदों को हुकूमत दे दोये मोहब्बत की कहानी नहीं मरती लेकिन कब तुम्हें इश्क़ पे मजबूर किया है हमनेखींच लाती है हमे तेरी मुहब्बत वरनाहज़ार इश्क़ करो लेकिन इतना ध्यान रहेजुदाई का ज़माना यूँ ठिकाने लग गया थादमे-सुख़न ही तबीयत लहू लहू की जाएतू समझता है तेरा हिज्र गवारा करकेटूटते इश्क़ में कुछ हाथ बँटाते जातेकोई टकरा के सुबुक-सर भी तो हो सकता है शेर लिखने का फायदा क्या है मेरी तन्हाई बढ़ाते हैं चले जाते हैं वो कैसी हैकिसी के बादजब भी ये दिल उदास होता हैजो हो इक बार वो हर बार हो ऐसा नहीं होतादिल में न हो जुरअत तो मोहब्बत नहीं मिलतीहोश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ हैजो हो इक बार वो हर बार हो ऐसा नहीं होता हर इक रस्ता अँधेरों में घिरा हैदुख में नीर बहा देते थे सुख में हँसने लगते थेमेरी तेरी दूरियाँ हैं अब इबादत के ख़िलाफ़कुछ दिनों तो शहर सारा अजनबी सा हो गयाये जो फैला हुआ ज़माना हैचाँद से फूल से या मेरी ज़बाँ से सुनिएयक़ीन चाँद पे सूरज में ए'तिबार भी रखकुछ तबीअ'त ही मिली थी ऐसी चैन से जीने की सूरत न हुईमोहब्बत में वफ़ादारी से बचिएआनी जानी हर मोहब्बत है चलो यूँ ही सहीगिरजा में मंदिरों में अज़ानों में बट गयाआनी जानी हर मोहब्बत है चलो यूं ही सहीमुँह की बात सुने हर कोई दिल के दर्द को जाने कौन जो हो इक बार वो हर बार हो ऐसा नहीं होता दिल में न हो जुरअत तो मोहब्बत नहीं मिलती होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है "एक कहानी"हाय रे मजबूरियाँ, महरूमियाँ, नाकामियाँमोहब्बत में हम तो जिए हैं जिएँगे हम इश्क़ के मारों का इतना ही फ़साना है मोहब्बत में इक ऐसा वक़्त भी दिल पर गुज़रता हैइब्तिदा वो थी कि जीना था मोहब्बत में मुहाल इश्क़ जब तक न कर चुके रुस्वा उन का जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानें ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे जो अब भी न तकलीफ़ फ़रमाइएगाकिया तअज्जुब कि मिरी रूह-ए-रवाँ तक पहुँचे अगर न ज़ोहरा-जबीनों के दरमियाँ गुज़रे नज़र मिला के मिरे पास आ के लूट लिया शाएर-ए-फ़ितरत हूँ जब भी फ़िक्र फ़रमाता हूँ मैं इश्क़ को बे-नक़ाब होना था बराबर से बच कर गुज़र जाने वाले बे-कैफ़ दिल है और जिए जा रहा हूँ मैं दास्तान-ए-ग़म-ए-दिल उन को सुनाई न गई कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं रहे अल्लाह अगर तौफ़ीक़ न दे इंसान के बस का काम नहीं अब तो ये भी नहीं रहा एहसास दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैंदुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं आदमी आदमी से मिलता हैइक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है पहले तो हुस्न-ए-अमल हुस्न-ए-यक़ीं पैदा कर आई जब उन की याद तो आती चली गईपहले तो हुस्न-ए-अमल हुस्न-ए-यक़ीं पैदा कर इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'वारस्ता उस से हैं कि मोहब्बत ही क्यूँ न हो याद है शादी में भी हंगामा-ए-या-रब मुझे यक-ज़र्रा-ए-ज़मीं नहीं बे-कार बाग़ का सादगी पर उस की मर जाने की हसरत दिल में है शिकवे के नाम से बे-मेहर ख़फ़ा होता है रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए न होगा यक-बयाबाँ माँदगी से ज़ौक़ कम मेरा नुक्ता-चीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाए न बने कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया इश्क़ तासीर से नौमेद नहीं हो गई है ग़ैर की शीरीं-बयानी कारगर ग़ैर लें महफ़िल में बोसे जाम के है बस-कि हर इक उन के इशारे में निशाँ और दर्द से मेरे है तुझ को बे-क़रारी हाए हाए दर-ख़ुर-ए-क़हर-ओ-ग़ज़ब जब कोई हम सा न हुआ आमद-ए-ख़त से हुआ है सर्द जो बाज़ार-ए-दोस्त इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले ख़ुश भी हो लेते हैं तेरे बे-क़रार सुनते हैं इश्क़ नाम के गुज़रे हैं इक बुज़ुर्ग हम से क्या हो सका मोहब्बत मेंकोई समझे तो एक बात कहूँ सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं जौर-ओ-बे-मेहरी-ए-इग़्माज़ पे क्या रोता है हाथ आए तो वही दामन-ए-जानाँ हो जाए कुछ न कुछ इश्क़ की तासीर का इक़रार तो है तेज़ एहसास-ए-ख़ुदी दरकार है बस्तियाँ ढूँढ रही हैं उन्हें वीरानों में अब दौर-ए-आसमाँ है न दौर-ए-हयात है अपने ग़म का मुझे कहाँ ग़म है अब अक्सर चुप चुप से रहें हैं यूँही कभू लब खोलें हैं दीदार में इक तुर्फ़ा दीदार नज़र आया शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो समझता हूँ कि तू मुझ से जुदा है आज भी क़ाफ़िला-ए-इश्क़ रवाँ है कि जो था कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम आई है कुछ न पूछ क़यामत कहाँ कहाँ सितारों से उलझता जा रहा हूँ किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं "पराधीन भारत में भगतसिंह"इश्क़ कहाँ अब पहले वाला होता हैतरह तरह से मिरा दिल बढ़ाया जाता हैगुज़र रहा है वो लम्हा तो याद आया हैकम से कम दुनिया से इतना मिरा रिश्ता हो जाएये कुछ बदलाव सा अच्छा लगा हैख़मोशी बस ख़मोशी थी इजाज़त अब हुई हैसच तो बैठ के खाता हैआइने का साथ प्यारा था कभीझुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहींकी है कोई हसीन ख़ता हर ख़ता के साथ की है कोई हसीन ख़ता हर ख़ता के साथ झुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहीं अज़ीज़ माँ मिरी हँसमुख मिरी बहादुर माँ तबीअत जब्रिया तस्कीन से घबराई जाती है राम बन-बास से जब लौट के घर में आए मुद्दतों मैं इक अंधे कुएँ में असीर प्यार का जश्न नई तरह मनाना होगा ऐ हमा-रंग हमा-नूर हमा-सोज़-ओ-गुदाज़ कितनी रंगीं है फ़ज़ा कितनी हसीं है दुनिया कोई ये कैसे बताए कि वो तन्हा क्यूँ है औरतगुलाब हाथ में हो आँख में सितारा होमुश्किल है कि अब शहर में निकले कोई घर से दिल का क्या है वो तो चाहेगा मुसलसल मिलना हर्फ़-ए-ताज़ा नई ख़ुशबू में लिखा चाहता है गुलाब हाथ में हो आँख में सितारा हो चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा अब भला छोड़ के घर क्या करते कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी धनक धनक मिरी पोरों के ख़्वाब कर देगा रस्ता भी कठिन धूप में शिद्दत भी बहुत थी मुश्किल है कि अब शहर में निकले कोई घर सेकमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी अब भला छोड़ के घर क्या करते वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया उस ने मेरे हाथ में बाँधा तुम मुझ को गुड़िया कहते हो अभी मैं ने दहलीज़ पर पाँव रक्खा ही था कि वही नर्म लहजा आज की शब तो किसी तौर गुज़र जाएगी वही नर्म लहजापैरों की मेहँदी मैंनेबढ़ाई मय जो मोहब्बत से आज साक़ी नेयूँ तो आपस में बिगड़ते हैं ख़फ़ा होते हैंकहने देती नहीं कुछ मुँह से मोहब्बत मेरीहज़ारों काम मोहब्बत में हैं मज़े के 'दाग़'देख कर जोबन तिरा किस किस को हैरानी हुई मज़े इश्क़ के कुछ वही जानते हैं जो हो सकता है उस से वो किसी से हो नहीं सकता अब वो ये कह रहे हैं मिरी मान जाइए कौन सा ताइर-ए-गुम-गश्ता उसे याद आया फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं वो ज़माना नज़र नहीं आता तेरी सूरत को देखता हूँ मैं साफ़ कब इम्तिहान लेते हैं उन के इक जाँ-निसार हम भी हैं बाक़ी जहाँ में क़ैस न फ़रहाद रह गया इधर देख लेना उधर देख लेना आप का ए'तिबार कौन करे ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया अच्छी सूरत पे ग़ज़ब टूट के आना दिल का ना-रवा कहिए ना-सज़ा कहिए अभी हमारी मोहब्बत किसी को क्या मालूम इस नहीं का कोई इलाज नहीं लुत्फ़ वो इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है दिल गया तुम ने लिया हम क्या करें फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैंतेरी सूरत को देखता हूँ मैं इस नहीं का कोई इलाज नहींराह पर उन को लगा लाए तो हैं बातों में न आया मज़ा शब की तन्हाइयों में सलाम उस पर अगर ऐसा कोई फ़नकार हो जाए जिस पे तिरी शमशीर नहीं है गर्दिश-ए-अर्ज़-ओ-समावात ने जीने न दिया अल्लाह ये किस का मातम है वो ज़ुल्फ़ जो बिखरी जाती है तुझे कौन जानता था मिरी दोस्ती से पहले बीमार-ए-मोहब्बत की दवा है कि नहीं है कुटिया में कौन आएगा इस तीरगी के साथ इस तरह मोहब्बत में दिल पे हुक्मरानी है इश्क़ के इज़हार में हर-चंद रुस्वाई तो हैजो कहा मैं ने कि प्यार आता है मुझ को तुम परमोहब्बत का तुम से असर क्या कहूँइश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद दिल हो ख़राब दीन पे जो कुछ असर पड़े अपने पहलू से वो ग़ैरों को उठा ही न सके हर क़दम कहता है तू आया है जाने के लिए तिरी ज़ुल्फ़ों में दिल उलझा हुआ है फिर गई आप की दो दिन में तबीअ'त कैसी आज आराइश-ए-गेसू-ए-दोता होती है कहाँ वो अब लुत्फ़-ए-बाहमी है मोहब्बतों में बहुत कमी है जज़्बा-ए-दिल ने मिरे तासीर दिखलाई तो है न हासिल हुआ सब्र-ओ-आराम दिल का हल्क़े नहीं हैं ज़ुल्फ़ के हल्क़े हैं जाल के तरीक़-ए-इश्क़ में मुझ को कोई कामिल नहीं मिलता हाल-ए-दिल मैं सुना नहीं सकता गले लगाएँ करें प्यार तुम को ईद के दिन बहुत रहा है कभी लुत्फ़-ए-यार हम पर भी अपने पहलू से वो ग़ैरों को उठा ही न सके गले लगाएँ करें प्यार तुम को ईद के दिन बहुत रहा है कभी लुत्फ़-ए-यार हम पर भी हाल-ए-दिल मैं सुना नहीं सकता रात जैसे जैसे ढलती जा रही हैउन को ख़ला में कोई नज़र आना चाहिए हर आह-ए-सर्द इश्क़ है हर वाह इश्क़ है वो मारका कि आज भी सर हो नहीं सका रूदाद-ए-जाँ कहें जो ज़रा दम मिले हमें कोई ख़ुशी न कोई रंज मुस्तक़िल होगा चलते चलते ये गली बे-जान होती जाएगी कोई ख़ुशी न कोई रंज मुस्तक़िल होगारूदाद-ए-जाँ कहें जो ज़रा दम मिले हमेंहर आह-ए-सर्द इश्क़ है हर वाह इश्क़ हैवो मारका कि आज भी सर हो नहीं सकाउन को ख़ला में कोई नज़र आना चाहिएइन को ख़ला में कोई नज़र आना चाहिएचलते चलते ये गली बे-जान होती जाएगीख़्वाहिश है इन गुलों को दवामी बहार दूँमैं कैसे मान लूँ कि इश्क़ बस इक बार होता हैदुकानें नफ़रतों की ख़ूब आसानी से चलती हैंऔरों का बताया हुआ रस्ता नहीं चुनतेबहुत आसान है कहना, बुरा क्या है भला क्या हैअगर है इश्क़ सच्चा तो निगाहों से बयाँ होगारास्ता जब इश्क का मौज़ूद है छोड़ो दुनिया की परवाहें, करो मोहब्बतमकाँ तो है नहीं जो खींच दें दीवार इस दिल में रखते अगर्चे आँख को हैं नम उदास लोग